Category Archives: गॉव-घर

गर्व से कहो आप अन्नदाता हो!

ग्रामीण अभिभावक जब बोलते हैं कि कुछ रोजगार या कमाने की व्यवस्था करो तो उसके पीछे एक छिपा हुआ डिस्क्लेमर होता है कि खेती मत करो. आज बहुत से उदाहरण मिल जायेंगे जहां पेशेवर डिग्रियां बटोरने के बाद युवा उद्यमी कृषि और उसके बाजार संबंधी उद्यमों में दिलचस्पी ले रहे हैं. यह वही लोग हैं जो कृषि को व्यावसायिक उद्योग बनाना चाहते हैं. इस तरह की सोच उन रूढ़ विचारों को खुल्लेआम चुनौति दे रहा है जो सोचते हैं कि कृषि करना घाटे का सौदा है. यह युवा उद्यमी आज बागबानी, डेयरी, पशुपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन, तिलहन, फुलों, फलों की खेती में तकनीक, पारंपरिक अनुभवों और मार्केट रिसर्च के बदौलत आज सलाना लाखों करोंड़ों कमाई रहे हैं. और बहुत से लोगों के लिए रोजगार भी पैदा कर रहे हैं.

इनके प्रयासों ने अब उस जन मत को खारिज करना शुरू कर दिया है जो यह मानती है कि कुछ ना कर सको तो खेती करो जिससे खाने को अन्न तो मिल जाये. किसानों को अब बाजार को समझना होगा नहीं तो भविष्य की चुनौतियां उनके लिए हिमालय समान हो जायेंगी.

मेरे परिवार की रोटी दाल भी खेती किसानी से ही चलती है. मैं यह खुद महसूस कर पाता हूँ कि कैसी संकट आन पड़ी है किसानों पर. सरकार चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर पाती किसानों के लिए क्योंकी उस पर विश्व व्यापार संगठन का दबाव बना रहता है सब्सिडी को खत्म करने का और किसानों को उसके हाल पर छोड़ देने का. भारत विश्व व्यापार संगठन के कई सारी शर्तों से अभी बचता चला आ रहा है लेकिन हमेशा बचा रहेगा ऐसी कोई गारंटी नहीं है। वो कहावत है न बकरे की मॉ कब तक खैर मनायेगी। इस समस्या की नींव हमने तभी डाल दी थी जब हमारी डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए भारतीय बाजार को खुले व्यापार के लिए के लिए खोला गया था।अब खुले बाज़ार का अग्रणी समर्थक देश अमेरिका भी नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अपने सुर बदलने लगा है।

क्या है न! किसान भले कुछ मामलों में रूढ़ हों परन्तु डरपोक और आलसी तो बिल्कुल नहीं. जरूरत है किसानों को सूचनाओं और जानकारियों के सदुपयोग की, नई तकनीकों के स्थानियकरण की, पारंपरिक बीजों के संग्रहण की और एक व्यावसायिक एटीट्यूड अपनाने की. किसानों को गर्व करना होगा कि वे भोजनप्रदाता हैं. उनकी ईमानदार मेहनत भारत के विकास में बहुत मायने रखता है. किसानों को अपने आसपास एक सकारात्मक माहौल पैदा करना होगा। कड़ीं मेहनत के अलावा फसल को खेतों में भगवान भरोसे तो छोड़ते ही हैं। कम से कम इतने रिस्क के बाद  बिचौलियों के भरोसे अपने मेहनत की कमाई को बर्बाद होने के लिए नहीं छोड़ सकते। आपको किसान क्लब बनाने होंगे। इसमें सरकार भी नाबार्ड और कृषि वैज्ञानिकों के जरिये आपकी आर्थिक और तकनीकि स्तर पर मदद करती है।

किसानों को अपने पढ़े लिखे बच्चों से यह कहने की हिम्मत करनी होगी की कलक्टर बनना जिंदगी का अंतिम लक्ष्य नहीं है अगर आपके पास अपने गॉव घर की खेती को नई दिशा देने के लिए टिकाऊ विचार और ज़ज्बा है तो गॉव आओ हम तुम्हारा सहयोग करेंगें. और मिलकर भारत निर्माण करेंगे. जिस दिन किसानी एक गर्व वाला पेशा बन जायेगा. इसकी आधी समस्या खुद ब खुद खत्म हो जायेंगी. जो कि निरसता के पर्वतीय स्तंभ पर टिकी पड़ी है. कृषि में रोजगार देने वाले जब आयेंगे तो पलायन की समस्या भी जाती रहेगी जो बिहार की एक ज्वलंत समस्या है।